श्रीहरी के चरण

श्रीहरी के चरण

शरीरं स्वरूपं नवीनं कलत्रं,

धनं मेरुतुल्यं यशश्चारु चित्रम् |

हरेरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं,

तत: किम् तत: किम् तत: किम् तत: किम् ||

भावार्थ :-

शरीर चाहे कितना भी सुन्दर हो ,

धर्मपत्नी चाहे कितनी भी मनमोहिनी हो,

धन चाहे कितना भी सुमेरु पर्वत की भांति असीम हो

और सारे संसार में चाहे कितनी ही नाम-प्रतिष्ठा-यश-कीर्ति क्यूं न हो चुकी हो।

परन्तु,

जब तक इस जीवन के दाता भगवान श्रीहरि के चरण कमलों में मन नहीं लगा …

तब तक क्या प्राप्त किया?

क्या पाया?

क्या पाया?

अर्थात् भगवत्भक्ति के अभाव में समस्त उपलब्धियां व्यर्थ हैं,

निरर्थक हैं।

तत : किम,

तत : किम ???