शरीरं स्वरूपं नवीनं कलत्रं,
धनं मेरुतुल्यं यशश्चारु चित्रम् |
हरेरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं,
तत: किम् तत: किम् तत: किम् तत: किम् ||
भावार्थ :-
शरीर चाहे कितना भी सुन्दर हो ,
धर्मपत्नी चाहे कितनी भी मनमोहिनी हो,
धन चाहे कितना भी सुमेरु पर्वत की भांति असीम हो
और सारे संसार में चाहे कितनी ही नाम-प्रतिष्ठा-यश-कीर्ति क्यूं न हो चुकी हो।
परन्तु,
जब तक इस जीवन के दाता भगवान श्रीहरि के चरण कमलों में मन नहीं लगा …
तब तक क्या प्राप्त किया?
क्या पाया?
क्या पाया?
अर्थात् भगवत्भक्ति के अभाव में समस्त उपलब्धियां व्यर्थ हैं,
निरर्थक हैं।
तत : किम,
तत : किम ???